और माँ सब कुछ-सब कुछ है
नफ़रत, प्रेम और पौधे
वहीं फिर अस्तित्व पाते हैं
जहां वो अपना अस्तित्व खोते हैं
नफ़रत और प्रेम मन की मिट्टी में
जड़ अपना जमाये रखता हैं,
तब तक, जब तक उसे कोई नया
खाद -पानी देने वाला न मिल जाय
और पौधा का बीज मिट्टी में
और मिट्टी तो जननी है
सहेजना जानती है
बचाना जानती है,
अपनी संस्तति को
हर बिपदा से
अपने कोख के बीज को
माटी तो माँ है…
और ‘मन’ माटी का ही एक रुप
और माँ सब कुछ-सब कुछ है
…सिद्धार्थ