और भी है
मेरे बारे में तेरा खयाल कुछ और भी है
यानि तेरे जेहन में सवाल और भी है
रफ्ता – रफ्ता खा रहा है मुझे गम मेरा
तेरे वास्ते मुझमें बवाल कुछ और भी है
जिन्दगी कट रही है वैसे बड़ी तेजी से
हकीकत से परे कुछ जंजाल और भी हैं
मैं तो चल रहा हूँ किसी तरह अपने रस्ते
गम का इस रस्ते पर इस्तेगबाल और भी है
वैसे संजीदगी कहीं गुम हो गयी है मेरी
तमाम उलझने बहरहाल और भी हैं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी