और दिसंबर आ गया
जाने कितनों के अपने,कितनों के सपने ये साल खा गया,
अभी कल ही तो जनवरी गुजरी थी और दिसंबर आ गया।
हर सुबह इक नया ख़्वाब लेकर उठा होगा कोई पथिक,
हर शाम थककर सूनापन लेकर लौटा होगा कोई पथिक।
कुछ राहों में चुपचाप कांटे बिछे मिले,
कुछ अपनों के दिल अचानक हमसे सिले।
चमकते ख्वाबों का सफर अधूरा रह गया,
जो बीत गया, वो बस एक किस्सा कह गया।
साल के पन्नों में मैंने भी लिखे कुछ अफसाने,
कुछ पराए अपने हुए, कुछ अपने हुए बेगाने।
पर हर ठोकर ने हमें मजबूत बना दिया,
गिरते हुए भी चलने का हुनर सिखा दिया।
दिसंबर आया है जीवन में तो जनवरी भी आएगी,
पर संघर्ष तेरा साथी है तो हर मंजिल तुमको चाहेगी।
लिख कहानी ऐसी “चेतन” लोग जिसको जी जाएं,
कर्तव्य पथ पर होकर अडिग मंजिल उनको मिल जाएं।
चेतन घणावत स. मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान