और दिल टूट गया ….
नन्हा सा था बेचारा ,
ना सहन कर सका आघात ।
ज़रा सी ठेस क्या लगी ,
टुकड़े हो गए उसके हजार ।
उन टुकड़ों में अपना अक्स भी ,
दिखा बंटा हुआ सा बार बार ।
छुआ जब उन टुकड़ों को तो ,
हाथ हो गए लहू लुहान ।
लहू के रंग में रंग गया फिर ,
अश्कों का पानी ।
उस पानी में बह गई अधूरे अरमानों,
ख्वाइशों और सपनो की कहानी ।
लहू तो बह गया मगर ,
टुकड़ों को लिया संभाल ।
लहू के दाग छुड़ाने की कोशिश की ,
मगर हुई सभी कोशिशें बेकार ।
फिर मैने सोचा देखेगा भी कौन ,
छोड़ो यह कोशिशें बेकार ।
ना किसी के पास फुरसत है ,
ना ही कोई चाह ।
बस ईश्वर देख सकता है ,
वो भी रखे अगर देखनें की चाह ।
अन्यथा ! जिसे टूटना था टूट गया ,
बेचारा ! मेरा मासूम सा ! भोला सा ,
प्यारा सा दिल !