और क्या चाहिए जिंदगी के लिए।
गज़ल
काफ़िया- ई स्वर की बंदिश
रद़ीफ- के लिए।
212……212……212…..212
और क्या चाहिए जिंदगी के लिए।
आप काफी मेरी हर खुशी के लिए।
गिरह-
ऐसा लगता है सारा जहां मिल गया,
पास तुम हो अगर दो घड़ी के लिए।
बिन तुम्हारे हमारा है अस्तित्व क्या,
जैसे पानी जरूरी नदी के लिए।
शुद्ध पानी हवा और वातावरण,
एक चैलेंज है इस सदी के लिए।
मान गंगा के पानी का संतो को है,
आबे जम जम जो है मौलवी के लिए,
रोज बरबाद भोजन है होता बहुत,
इक निवाला बहुत भुखमरी के लिए।
रोटी कपड़ा मकां और ‘प्रेमी’ भी हो,
प्यार भी चाहिए आदमी के लिए।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी