और क्या कहूँ तुमसे मैं
इच्छा मेरी होती तो है,
और बढ़ाता हूँ कदम भी,
तुमसे मिलने के लिए कभी मैं,
तुमसे खून का रिश्ता जो है,
मेरे परिवार का अंग जो है तू ,
मगर उतार देता हूँ हमेशा मैं,
अपने पहने हुए जूते और कपड़े,
और आ नहीं पाता मैं तुमसे मिलने Il
मैं नहीं पहुंचाना चाहता अब,
कष्ट तुमको और मुझको भी,
मैं नहीं करना चाहता अब कम,
तुम्हारी और मेरी ख़ुशी को,
झुकाना नहीं चाहता अब मैं,
सम्मान और सिर तुम्हारा,
बदलना नहीं चाहता अब मैं,
तुमको और मुझको भी ll
आखिर तुमसे ही तो सीखा है मैंने,
क़ायम रहना अपने इरादे और वादें पर,
तुमने ही तो बनाया है मुझको ऐसा,
मुबारक हो तुमको हर ख़ुशी,
मिले तुमको सदा कामयाबी,
और जहां में रोशन हो तुम,
यही कहता है मेरा अंतर्मन,
और क्या कहूँ तुमसे मैं ll
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला – बारां (राजस्थान )