और कितना***
बाहर खड़े हो, जो शोर मचाए इतना
भीतर आए तो जाने, है गहरा कितना…
भूख और प्यास से, परेशां है जो
सुने वो और झूठा अफसाना कितना…
छत तक नहीं है, जिसके सिर पर
दिखाओगे उसे महलों का सपना कितना…
देना है तो, दो वक़्त की रोटी दे दो
वादों का खिलाओगे तुम चारा कितना…
बगावत को अगर, मजबूर हो गया वो
तुम्हे गिराने में उसे वक़्त लगेगा कितना….