और कालू चला गया …
पुण्यात्मा था वो ,
कुछ हटके था उसका आचरण ।
और कोई लालच नहीं ,
बस चंद बिस्कुट खाने को धरता था चरण ।
और कभी घूमते घामते ,
आ जाता द्वार पर बैठने ,सुस्ताने ।
बहुत भाता था उसे जब लगते थे ,
उसके सर पर हाथ फेरने ।
प्यार की भाषा तो समझता था,
कुछ इशारे भी समझता था ।
वोह मनुष्य के मन मस्तिष्क के,
भाव पढ़ लेता था ।
ना जाने क्यों उससे पर कभी किसी ,
बात पर जब क्रोध आता ।
मगर तुरंत ही ग्लानि महसूस कर ,
दिल ममता और दया से भर जाता।
एक पालतू जानवर जैसा ,
वोह अपनापन सा व्यवहार करता ।
जब जी चाहे बेझिझक ,
हमारे द्वार पर आकर बैठ जाता ।
और हमें हमारे फर्ज़ के प्रति ,
संवेदना जगाता।
तभी तो सर्दियों में उसके लिए बिस्तर ,कपड़े,
और गर्मियों में उसके लिए पानी तैयार रहता ।
उस दिन भी हमारे द्वार पर आकर बैठा था,
हमने उसे बिस्कुट देकर उसके सर पर हाथ ,
फेरा था ।
जाने क्यों एहसास हुआ वोह अस्वस्थ था ।
बिस्कुट उसने नहीं खाया ,
कुछ अनमना सा हो रहा था ।
कुछ देर धूप सेंककर फिर जाने कहां चला गया।
एक हफ्ता गुजर गया जब ,
वोह नजर न आया ।
हम बड़े परेशान हुए ,चिंतित हुए ,
और सोसाइटी के चौकीदार से पूछा।
सुनकर दिल धक से हो गया ,
मन बहुत उदास हुआ ।
हमें अपने कानों पर अभी तक विश्वास न हुआ ,
जब चौकीदार ने बहुत दर्दभरा संदेश हमें सुनाया ।
हमारा कालू हमें छोड़कर सदा के लिए चला गया ।
दिल दुखी तो हुआ मगर ईश्वर का शुक्र किया ,
उसे पशु योनि ( कुत्ता ) से मुक्ति मिली ।
और दुआ की उसे अगला जन्म मनुष्य योनि में मिले ।
और वोह अगले जन्म सदा सुख पाए ।
उस पुण्यात्मा को शत शत नमन ।
ईश्वर उसे अपने चरणों में स्थान दें।
ऊं शांति !!