और कहना “वो पागल थी”
प्रेम पत्रों की नमकीन दुनियां
अब तो … तबाह हो गई
अब नहीं लिखे जाते प्रेम पत्र
अब नहीं छुपाया जाता
प्रेम पत्रों को
आटे के डिब्बों में
संदूकची के कोनों में
बचपन के खिलौने में
वो सुख नही स्याही को अब
नमकीन होने में…
समय नहीं अब प्रेमियों के पास
प्रेम पत्रों के सुर्ख कोनों को
आंसुओं से भिगोने को
अब नहीं लिखे जाते प्रेम पत्र
अब नहीं छुपाए जाते प्रेम पत्र
मैं अपनी डायरी के अंतिम पन्ने को
करूंगी तुम्हारे नाम
लिखूंगी एक प्रेम पत्र
अपने अंदर की सूखती नदी से
स्याही उधार मांग
अपने हस्ताक्षर के जगह
रख दूंगी एक चुम्बन
वो बिदा का प्रतीक होगा
तुम से, इस जग से, सब से
बस तुम्हारे लिए ही छोड़ जाऊंगी खुद को
उस आखिरी पन्ने पर
उस प्रेम पत्र के सुर्ख कोने पर
जिसे तुम सुनाना अपने बच्चों को
और कहना “वो पागल थी”
~ सिद्धार्थ