औरत
अमूर्त सी भावनायें
आहत बहुत करतीं
हैं,
टूटने की आवाज बिना
स्तब्ध सा कर देतीं
हैं!
निःशब्द होकर मैं
मुस्कुराती रहती
हूँ,
औरत हूँ इसलिये
सब भूलाती रहती
हूँ!!
इन्द्रधनुष के रंगों को
भावनाओं मे ढूढंती
रहती हूँ,
कोहरे सा धूमिल पाकर
वास्तविकता में आ जाती
हूँ!
अर्थहीन महत्तवहीन
भावनायें मेरी नही,
फिर भी
निःशब्द हो जाती
हूँ………