औरत
हे औरत !
तुम इतनी नादान परेशान सी क्यों रहती हो,
जब दर्द है सीने में तो क्यों सहती हो,
अंबर को नहीं हमने बांधे रखा है
और यह तेरा भी है
उडो़ न तुम भी
ये पंख काटने का बहाना लिए क्यों रहती हो,
इच्छाओं को दबाकर हमने भी बहुत रखे हैं
पर ये दर्द का दुकान बनाये क्यों रहती हो,
तुम्हें वहम है
कि सारे रिश्ते जरूरतों से बंधे हैं,
हमने तुमसे कभी मां बहन और
महबूब बनने को तो नहीं कहा,
हंस-हंसकर तेरा सहना और रो रो कर तेरा कहना,
सच में हमें भी अच्छा नहीं लगता
पर जब सह न सको दर्द तो फिर क्यों सहती हो,
हर बार पीछे छूटने की बात
पुरुषों के सर पे क्यों रखती हो,
प्रकृति ने हम दोनों को साथ बनाया
फिर हमने अपना फर्ज निभाया
पर कब छूट गई तुम पीछे
कैसे रह गई पुरुषों के नीचे| :आलोक(गीत)