औरत
निकलती है ज्यों ही औरत कमाने को
आ जाते है सभी,हाथ आजमाने को
कभी मित्रता, कभी मदद के बहाने
खोजते है रास्ते उसे बहकाने को
कभी तंज,कभी अश्लील टिप्पणियो से
करते है प्रयास उसका मनोबल गिराने को
नही मानती हार,नही झुकती जब औरत
तन जाते है उसकी अस्मिता मिटाने को
बहन ,बेटी उनके घरो मे भी तो होगीं
कैसे आती है हिम्मत, उनसे नजर मिलाने को
ना करेगी समझौता,झुकेगी न हारेगी
औरत नही कोई वस्तु,बता देगी जमाने को
कहती है प्रीति,सिर के ऊपर हुआ जो पानी
वक्त ना लगेगा दुर्गा से चण्डी बन जाने को