औरत है ना !
सुबह उठकर सबके लिए भोजन पकाएगी,
खुशबू से भले ही उसकी क्षुधा जाग जाएगी,
एक औरत है ना !
सबके बाद ही खाएगी l
जब लगती होगी भूख,
मन मे उठती होगी हूक,
सोचती हूँ होकर दंग,
है रोटी पर भी प्रतिबंध !
फ़र्ज़ अपना समझकर वो प्रतीक्षा कर लेगी,
औरत है ना !
सबके बाद ही खाएगी ।
भूख पर भी इनका
पहला अधिकार है,
संग औरत के खाने से
घटता इनका मान है,
अपमान सहकर भी वो जिंदा रहेगी,
औरत है ना !
सबके बाद ही खाएगी ।
माँ के बने सारे पकवान;
पर उसका हक था समान ,
उतरते ही सब्ज़ी जो ,पहले खाती थी;
लाडली माँ की, वो कहलाती थी ।
सपने में भी उसके; यह बात न आई होगी !
अरे ! औरत है ना !
सबके बाद ही खाएगी ।
✍️ज्योती