औरत तेरी लाचारी
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समझ न पाए कोई भी औरत की लाचारी
जिस पर भी विश्वास करे वही देह व्यापारी
आदिकाल से ही चलती आए यह रीत पुरानी
घर आंगन सीमा कभी लांच न पाई बेचारी
श्रृँगार की वस्तु समझता आया तभी से नर
बंदिशों की बेड़ियों में जकड़बंद. है नारी
स्त्री को जंजीरों में जकड़ते और स्त्री रुप पूजें
रजोधर्म कारण प्रतिबंधित होती कर्मों मारी
अवैतनिक कार्य करती है वह घर में सारे
घर में खाली तू रहती है कह दें अत्याचारी
जिसका मन चाहे वो पल भर में धमकाये
सबकी मर्जी सहती रहती वह बन संसारी
घर बाहर हर जगह काम करने में महारत
छाती में दूध, आँखे होती अश्को से भारी
मनसीरत देख हालात क्षण में घबरा जाए
कैसे कैसे जुल्म सहे जैसे बस सरकारी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)