औरत तेरी यही कहानी
एक औरत की सुनो कहानी, बोल ना पाई जो अपनी वानी।
जब जब उसने बोलना चाहा,तब तब क्या कह उसको चुप करवाया।।
बचपन में उसने जो बोलना चाहा, माँ ने झिड़क कर उसे बताया।
बच्चे ज्यादा नहीं बोलते,कहकर उसको चुप करवाया।।
थोड़ी बड़ी होने पर उसने जब,मन की बात को कहना चाहा।
चुप रहो तुम अब बड़ी हो रही,कह कर दादी ने उसे भगाया।।
अपनी जवानी में लड़की ने,जब किसी विषय पर बोलना चाहा।
डांट कर उसको चुप करवाया,दूजे घर जाना है यह बतलाया।।
पहुंच गई ससुराल वो अपनी,ससुराल में जब कुछ बोलना चाहा।
नहीं तुम्हारा मायका है यह बहु,सास ने यह कह कर धमकाया।।
अपनी गृहस्थी संभाल कर उसने,पति से जब कुछ कहना चाहा।
क्या जानो तुम दुनियादारी,पति बोला क्यों घर में है बबाल मचाया।।
ऑफिस में भी यही हुआ जब बॉस से उसने कुछ कहना चाहा।
जितना काम बताया तुमको,बस वही करो बॉस ने यह बतलाया।।
अपने बच्चों को खूब पढ़ाया,और उनको भी जब कुछ कहना चाहा।
छोड़ो इन सब बातों को माँ तुम,तुम क्या जानो यह बतलाया।।
उम्र बढ़ी वो बूढ़ी हो गई अब जब उसने कुछ कहना चाहा।
अब तो माँ आराम करो बस,उसके बेटे ने भी उसको यही बताया।।
पूछे विजय बिजनौर उन सबसे,क्या बिन माँ बहन बेटी के घर है चलाया।
बिन औरत के जो चल नहीं सकते,उन सभी ने उसको चुप करवाया।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी