औरत एक अहिल्या
हर एक औरत
में
होती है एक अहिल्या
पत्थर की शिला।
भगवान भी छल जाते हैं जिसे
श्रापित हो पति से
जो ताउम्र करती है इंतजार
किसी राम की पावन छुअन का
ताकि बन सके वो फिर से
एक औरत।
पर ऐसा क्या है औरत होने में
क्यों वो फिर औरत ही होना चाहती है??
न जाने क्यों??
सुरिंदर कौर