औरत आबरु अपमान
कब थमेगा यह तूफान
औरत आबरू अपमान
निशदिन होता घमासान
कब होगा नारी उत्थान
हिंदू हो या मुसलमान
प्रियंका हो या मुस्कान
बदलते हैं बस यह नाम
तेरे वही बूरे कृत्य काम
देश का कोई भी कोना
तेरा काम वही घिनौना
वासना भावना वशिभूत
करे है सदैव बुरी करतूत
बच्ची,युवा हो या अधेड़
नारी सतीत्व रहा उधेड़
कर दी हैं सारी हदें पार
नारी- आबरू तार तार
तुम थे मानवता पुजारी
बन बैठे हो बालात्कारी
उठाता अवसर फायदा
पाप बढ गया है ज्यादा
अंदर भर वासना जुनून
आँखों में खोलता खून
छोड़ता नहीं कोई मोका
कमाता पाप,करे धोखा
कहाँ गई तेरी इंसानियत
भरी तेरे अंदर हैवानियत
तुम तो थे नारी के रक्षक
तुम तो बन बैठे हो भक्षक
नारी अपनी हो या पराई
जो पड़ जाए तेरी परछाई
रहती अस्मत सदा गंवाती
तुम्हें शर्म जरा नहीं आती
वो पत्नी, बेटी,माता,बहन
जिनकी करता तू तौहीन
मात्र कल्पना कर नादान
हों ये तेरी बेटी,माता,बहन
हो जाए उन संग दुष्कृत्य
उनका क्या होगा भविष्य
उस पल क्या होगा हाल
तुम भी हो जाओगे बेहाल
तब समझोगे तुम ये प्रहार
कैसे होती आबरू तार तार
कुछ तो कर लो तुम प्रयत्न
वरना होगा मानवता पतन
मत करो तुम बालात्कार
सीखो करना नारी सत्कार
नारी है मान सम्मान प्रतीक
धुर से चलती आती ये लीक
करो नारी का मान सम्मान
होगा नारी का तभी उत्थान
अब तुम बदलो निज सोच
निकलेगी इंसानियत मोच
कितना होगा वो दिन महान
रूकेगा तिरस्कार -अपमान
सुखविंद्र सिंह मनसीरत