औरतें ऐसी ही होती हैं
औरतें मन से टूट कर भी
अपनों का सहती हैं ,
औरतें ज़िंदा रहकर भी
अपनों के लिए मरती हैं ,
औरतें भूखी रहकर भी
अपनों को पेट भरा है कहती हैं ,
औरतें दुखी रहकर भी
अपनों के आगे मुस्काती हैं ,
औरतें गालियां सुन कर भी
अपनो की रक्षा के लिए मंत्र बोलती हैं ,
औरतें वसीयत में हिस्सा ना होकर भी
अपनों की मुसीबत में अपने गहने तौलती हैं ,
औरतें ख़ास ओहदों पर होकर भी
अपनों के आगे आम ही कही जाती हैं ,
औरतें अपनी रक्षा हेतु किसी को आगे ना बढ़ता देखकर भी
अपनों की रक्षा के लिए चंडी बन जाती हैं ,
औरतें उपरी सब बातें सही होते हुए भी
अपनों के लिए इन सारी बातों को नकारती हैं ,
औरतें गलत ना होकर भी
अपनों के लिए ख़ुद को गलत स्वीकारती हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )