औचित्य
“उचित, अनुचित, यथोचित का औचित्य”
यदि कोई कथन तथ्यों पर आधारित है, सही है
क्या फ़र्क पड़ता है, कि ये बात किस ने कही है
परंतु प्रायः देखा गया है लोग यह बात पूछते हैं
व्यक्ति हो जाता है विषय, बात वहीं की वहीं है
संवाद का संदर्भ, बदल जाता है, वाद विवाद में
परिप्रेक्ष्य था, क्या सही है, हो गया कौन सही है
सीधे, सरल सटीक बोल, थे सत्य की परिभाषा
बोलने वाला मिल जाए, तो सुनने वाला नहीं है
उचित को उचित, न कह अनुचित को अनुचित
असत्य को असत्य, कहने का चलन ही नही है
निज वक्तव्य सार्वजनिक सूचना जैसे हो गए हैं
भूल सुधार या त्रुटि संशोधन अब सुहाते नही हैं
सखा संगी, अब वार्तालाप नहीं, जुगाली करते हैं
औचित्य मत पूछ बैठना यारों, अब इशारा यही है
~ नितिन जोधपुरी “छीण”