ओ हमनवां यारा
ओ हमनवा यारा मेरे , एक शाम उधार दे दे
जिन्दगी फिसल रही , एक शाम बहार दे दे
बीत गये सावन अनेक , पर तू छिपा कहाँ
मृगनयनी सी भटकूँ मैं , ढ़ूढूँ तुझे यहाँ वहाँ
पलक मेरे रहे उन्मीलित , बस निहारू तुम्हें
तू मैं हो जाए और मैं तू , रूप संवार दे दे
अम्बर अवनि सम मेल , बन जाऊँ क्षितिज
छटके मन उर्मि छटा , पुलक बन्ध शिथिल
जीवन पाये आकार , ऐसा बन जा साहिल
नयन में रहे मंजर तेरा , बन जा ते साहिब
अधर मेरे रहे अधखुलित , जो पुकारू तुम्हें
नीर पयसम मिल जाऊँ , इश्क ज्वार दे दे