ओ साथी ओ !
ओ साथी ओ ! बन गया तू मीत रे,
दुनिया की यही रीत है रे,
निभाना मेरा प्रीत रे,
ओ साथी ओ !
ओ साथी ओ! संग चलना गाते गीत रे,
अपनी प्रेम की संगीत है रे,
मन नाचे खुशी से झूम के,
ओ साथी ओ!
ओ साथी ओ! बिन तेरे जीना न जीना रे,
अपनी पीड़ा तेरे बिना है रे,
आंँखे विरह से नम है रे,
ओ साथी ओ!
ओ साथी ओ! हृदय में तू मेरे बस गया रे,
अब कोई और न भाये मन को रे,
जग सूना है तेरे बिन रे,
ओ साथी ओ!
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।