ओ सर्द रातें
ओ सर्द रातें
द्वीप की रातें
बहुत सताते
हिम की परतें
मोटी सतह।
बैठ उस पर,
अलाव जलाते
सारी रातें
सारी बातें।
गुनगुनी ताप
असर न बताते
बार – बार तन
बर्फ बन जाते।
गर्म सूप,
चाय,काफी
मात्र सहारे
जान है तो
जहान है
मितवा रे।
सर्द हवाएं
गाना गाते
गहरी रातें
अंधेरी रातें।
सन्नाटा से
बेखबर
न आना इधर
जहां न जाए
नजर।
कविराज
संतोष कुमार मिरी
रायपुर छत्तीसगढ़