ओ रे कवि
ओ रे कवि
कर तेज़ धार अपने हथियार की
धधक रही ज्वाला लूट,हाहाकार की
समय हुआ प्रचंड ,,,
कर तैयारी तू अब वार की,,,,
है तुझ पर मालिक का करम
नवाजी उसने ये नायाब कलम
लिख तू स्वच्छंद ,,
रख लाज उसके एतबार की
कर तेज़ धार अपने हथियार की….
तो लिख
लिख कि सोया लहू दौड़ पड़े
छंट जाएं ये बादल काले घने
रहे देश अखंड…
कसम तुझे इसके इतिहास की
कर तेज़ धार अपने हथियार की..
सौंदर्य पूजन बहुत हुआ
इश्क मोहब्बत ताक पर रख
हवा हुई उदंड,,,,
प्रज्वलित कर मशाल बदलाव की
कर तेज़ धार अपने हथियार की…