ओ मेरे !….
ओ मेरे ! अवकाशवादी मन,
ओ मेरे ! अवसादवादी मन ,
घुट-घुट कौन जिए ?
आँसू रोक लिए हैं तूने,
मुस्कानें कैसे आएँगीं ?
दुविधा थाम रखी है तूने,
सुविधाएँ कैसे आएँगीं ?
ओ मेरे ! आकाशवादी मन,
ओ मेरे ! परिवादवादी मन,
झगड़े मोल लिए ।
नफ़रत रोक रहा है पगले,
प्यार कहाँ से तू पाएगा ?
कलियाँ कुतर रहा सैलानी,
फूल कहाँ से ले आएगा ?
ओ मेरे ! आभाषवादी मन,
ओ मेरे ! अपवादवादी मन,
उल्टे दाँव दिए ।
गज से उतर गधे पर बैठा,
स्वाभिमान कैसे लाएगा ?
लौट के बुद्धू यदि घर आया,
तो कुछ ज़िन्दा रह पाएगा ?
ओ मेरे ! परिभाषवादी मन,
ओ मेरे ! अनुवादवादी मन,
बासे ज़हर पिए ?
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।