ओ ! मातु देवी, नर्मदा
ओ ! मातु देवी, नर्मदा,
करना कृपा तू, सर्वदा ।
हो न पायें तेरे चरणों,
से कभी भी हम जुदा ।….
तट पे तप करने को तेरे,
छोड़ के निज धाम को ।
गंधर्व,किन्नर, नाग,मुनि,
मनु-सिद्ध आते हैं सदा ।…
अभिराम दर्शन की छवि,
संताप मन के क्षण हरे ।
निश्छल है तेरा प्रेम माँ,
ख़ाली न तेरा दर कदा ।…
सामर्थ्य, सती के रूप में,
रोका था रवि के वेग को ।
त्राहि-त्राहि लोक में तिहुँ,
करती दया न जो तू यदा ।…
पूनम-अमा, अरु पर्व में,
मेले भी लगते हैं जहाँ ।
नाम ले पलते मुसाफ़िर,
गाते महिमा ले मज़ा ।…
ब्रम्ह-हत का शाप हरने,
श्रीराम अन्हवाए जहाँ ।
‘अंजान’ तट का तेरे वासी,
गाये है गाथा हो फ़िदा ।…
दीपक चौबे ‘अंजान’