ओ माँ…
ओ माँ…
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ओ माँ…
आज गोबर थापती तेरी तस्वीर,
पुरानी याद आ गयी।
आँख भर आयी,वो पुराने पल यादकर,
मेरे तकदीर की तदबीर थी तू।
अब वो तेरी रूहानी,
फिर से दिल पर छा गयी ।
गोबर से सनी वो हाथें,
थप थप की वो आवाजें,
और खंडहर सी दीवालों पर उपले की वो थापें ।
उफनती गर्मी में चेहरे पर बिखरे तेरे बाल ,
क्यूँ कर, वो कहानी याद आ गयी।
ओ माँ…
आज गोबर थापती तेरी तस्वीर,
पुरानी याद आ गयी।
मिलाती थी गोबर को आटे की तरह,
सूखी घास पत्तियों को, मिला इस तरह,
गीली इतनी ही रहे कि,चिपके वो दीवारों पर।
कमर में साड़ी का पल्लू बांधे ,
वो सारी रवानी याद आ गयी।
ओ माँ…
आज गोबर थापती तेरी तस्वीर,
पुरानी याद आ गयी।
मैं नादान गुलिस्ताँ, तेरे जीवन का,
तू फरिश्ता बन, नभ से उतरी थी।
औकात कहाँ था मेरा जग में ,
तेरे सान्निध्य में ही, किस्मत बनती थी।
उपलों में जो तेरे,पसीने की बूंदे गिरती थी,
वो मोती बन, मुझमें दिखती थी ।
आज बतलाऊंगा मैं जग को,
मांँ की जिन्दगानी कैसी,
हम सब को भा गयी।
ओ माँ…
आज गोबर थापती तेरी तस्वीर,
पुरानी याद आ गयी।
( ये उन दिनों की बात है, जब हमारे घरों में रसोई ईंधन के रूप में एलपीजी गैस या अन्य कोई आधुनिक विकल्प नहीं होता था और घर की गृहणियां घरेलू कामकाज के अलावे आंगन में बंधे गायों की देखभाल करती थी और फिर रसोई ईंधन के लिए गाय के गोबर का इस्तेमाल विभिन्न रूपों जैसे उपले, कंडे आदि के माध्यम से करती थी )
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २० /०२/ २०२२
फाल्गुन ,कृष्णपक्ष ,चतुर्थी ,रविवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201