*ओ मच्छर ओ मक्खी कब, छोड़ोगे जान हमारी【 हास्य गीत】*
ओ मच्छर ओ मक्खी कब, छोड़ोगे जान हमारी【 हास्य गीत】
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ओ मच्छर ओ मक्खी ! कब, छोड़ोगे जान हमारी
(1)
रात-रात भर भिन-भिन करते, हम मर-मर कर जीते
खून चूसने में माहिर तुम, खून हमारा पीते
फैलाते हो मच्छर जी ! तुम, नई-नई बीमारी
(2)
खाने का सामान तुम्हारे, कारण रहे छुपाते
जिस फल पर तुम बैठ गयीं, वह फल हम कभी न खाते
एक अदद अस्तित्व तुम्हारा, घर पर पड़ता भारी
(3)
कभी छिपकली अच्छी लगती, जो तुम को खा जाती
दीवारों पर रेंग-रेंगकर, यह भी सदा डराती
कभी न की चूहा-बिल्ली, कुत्ते से हमने यारी
ओ मच्छर ओ मक्खी ! कब, छोड़ोगे जान हमारी
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9996 5455