ओ पथिक तू कहां चला ?
ओ पथिक तू कहां चला,
सत्य की खोज में।
बड़ा कठिन है सत्य को पाना,
झूठ के शोर में।।
तेरा पथ बड़ा पथरीला है,
और तेरे कदम बड़े है कोमल।
तू लड़ता फिर रहा है स्वयं से,
कहां से लायेगा इतना कौशल।।
जा तू लौट जा घर को अपने,
कलयुग में सत्य एक लगता मिथ्या है।
अपने अंतर्द्वंध से कैसे लड़ेगा,
स्वयं से लड़ना जैसे आत्म हत्या है।।
कलयुग के जीवन का,
न कोई तथ्य है न कोई तथ्य है।
जीवन,मृत्यु समय का चक्र है,
एक बस यही सत्य है,यही सत्य है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ