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25 Feb 2021 · 1 min read

मैं दुखों में जी रहा हूँ

2122 + 2122
दर्द को अब पी रहा हूँ
मैं दुखों में जी रहा हूँ

ओढ़ ली खामोशियाँ अब
होंठ अपने सी रहा हूँ

भीड़ थी जिसमें हरदम
मैं अकेला ही रहा हूँ

ज़हर नफ़रत का घुला जब
मैं तमाशायी रहा हूँ

आदमी लिपटा कफ़न में
मैं ही कातिल भी रहा हूँ

2 Likes · 2 Comments · 271 Views
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