मैं दुखों में जी रहा हूँ
2122 + 2122
दर्द को अब पी रहा हूँ
मैं दुखों में जी रहा हूँ
ओढ़ ली खामोशियाँ अब
होंठ अपने सी रहा हूँ
भीड़ थी जिसमें हरदम
मैं अकेला ही रहा हूँ
ज़हर नफ़रत का घुला जब
मैं तमाशायी रहा हूँ
आदमी लिपटा कफ़न में
मैं ही कातिल भी रहा हूँ