** ओ कंजकली **
ओकंजकली मिश्री की डली,
ढूँढू मै तुझको गली-गली ।
लहराती अलकें भौंरों सी तेरी,जैसे
काली घटा सावन की झड़ी।।
ओ कंजकली ओ कंजकली
ये आँखें तेरी खंजन जैसी,
शर्माए बिन अंजन जैसे।।
गालों का रंग है तेरा गुलाबी,
होंठो का रंग है सुर्ख गुलाबी ।।
ओ कंजकली ओ कंजकली
आँखों से तेरे छलके पयमाने
पीने वाले न जाये मयखाने
महफ़िल में मज़ा आता है तब,
जब चाल तेरी हिरनी सी भली ।।
ओ कंजकली ओ कंजकली.
मतवाली इन आँखों से तू
ज़रा और.पिलादे.और पिलादे ।
है हंस के जैसी ग्रीवा तेरी,
आके गले मिल जाऊँ
तेरी कसम।।
ओ कंजकली ओ कंजकली है बाहें तेरी तरु-लतिका,
बाहों में भरना है मलिका।
मन मचल रहा है मतवाला,
कोई तो जाने .दिलवाला।।
ओ कंजकली ओ कंजकली
है वक्ष तेरे सैंधव शिल्प समान,
मानो बिम्बा फल महान ।
बेदर्दी अब तो तू ही बता,
कब मादक होंठो से देगी पिला।।
ओ कंजकली ओ कंजकली तेरे बिना अब क्या जीना,
जीने में रखा है बस पीना।
होठो से पिया या पयमानों से,
अब दिल ना जला
अब दिल ना जला।।
ओ कंजकली ओ कंजकली
?मधुप बैरागी