ओस
मनहरण घनाक्षरी
ओस
वार्णिक छंद।
विधान 8,8,8,7
यति16,15,
पदान्त गुरु
सम तुकांत ।
नभ से उतर आई,
बूंद रूप मन भायी,
हीरे जैसी चमक की,
लड़ियों की तार है।
आते- जाते देखे तोहे,
शीतल छुअन सोहे,
देख-देख मन मोहे,
कैसा मनुहार है।
क्षणभर का ही जीना,
सोम -सुधा रस पीना,
कुसुम बिछोने पाए,
जीवन साकार है।
है शुभ्र धवल सूरत,
मन मोहिनी मूरत,
छुई -मुई सा है तन,
लोभित अपार है ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)