ओस
ओस
अहा! प्रभात ऊषा बेला में,किसने छिड़की ओस की बूंदें।
श्वेत धवल मोती की सी लड़ी, होती ओस की बूंदें।
कौन जोहरी है गया भूल,ये उज्ज्वल चौंध के हीरे।
देख चांद कहीं तू तो न भूला,संगीतारे अपने यहीं रे।
नीलम शर्मा
ओस
अहा! प्रभात ऊषा बेला में,किसने छिड़की ओस की बूंदें।
श्वेत धवल मोती की सी लड़ी, होती ओस की बूंदें।
कौन जोहरी है गया भूल,ये उज्ज्वल चौंध के हीरे।
देख चांद कहीं तू तो न भूला,संगीतारे अपने यहीं रे।
नीलम शर्मा