ओस
जिन्दगी तू बार बार
मेरे दिल को आजमाती क्यों हो?
हम तो जल कर पिघल ही रहे हैं,
तेरे सांचे में ढल ही रहे है,
तूफाँ से मुझको बुझाती क्यों हो?
पत्थर हो जाऊं निष्प्राण
इतना कठोर बनाती क्यों हो?
ज़ख्म कभी न भर पाये
इतने कायदे से कुरेदा है,
फिर लोग कहते हैं
न कहना दुनिया से कुछ भी
,तुम बस हँसा करो,
अलग एक मुखौटे में रहा करो।
चाहे कितना भी अंधेरा हो,,
घोर मातम का डेरा हो,
अपनी सिसकियों को आवाज न दो,
फिर मेरे होने का वजूद क्या है!
बर्फ से अहसास में रूप क्या है!
ओस हूँ एक सुबह की
धूप से हमे डराते क्यों हो?
मिट भी गए तो अगली सुबह
पुनः चमक उठूंगी
एक नया जन्म लेकर।
पूनम कुमारी(आगाज ए दिल)