ओस की बूंदें
आज दिल बहुत शायराना है,
शायद मौसम का हमें किसी,
से मिलाने का बहाना है।
ओस की ये बूंदें फूलों को,
चमका रही हैं।
शायद दो दिलों की ये दास्तां ,
बता रहीं हैं।
अरे! उस अजनबी से तो ,
ये ओस की बूंदें अच्छी है।
जो बेखोप हमारे चेहरे ,
पर तो टिकी हैं।
इस धुंध का भी अपना,
ही एक नजारा है।
एसा लगता है मानों ये जहां,
बेगाना होकर भी हमारा है।