ओशो रजनीश ~ रविकेश झा
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी अच्छे और स्वस्थ होंगे और निरंतर ध्यान का अभ्यास कर रहे होंगे। ध्यान ही एक मात्र उपकरण है जिसके मदद से हम स्वयं से परिचित हो सकते है। हमें ध्यान केंद्रित करना चाहिए तभी हम जीवन में पूर्ण स्पष्टता ला सकेंगे। आज बात कर रहे हैं ओशो रजनीश जी की आज उनका जन्म दिवस है ऐसा तो हम लोग जानते हैं कि महापुरुष का कभी जन्म नहीं होता और न मृत्यु वह भ्रमण करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं बहुत कम लोग होते हैं जो इस श्रेणी में आ पाते हैं।
ओशो के दर्शन का परिचय।
वैसे हम सांसारिक दृष्टि से देखें,तो वैसे ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में हुआ था। उनका असली नाम चंद्रमोहन जैन था, ओशो एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक थे। जिन्होंने अपने जीवनकाल में आध्यात्मिकता, जीवन दर्शन और आत्म-साक्षरता और कई प्रवचन दिए जो आज कई पुस्तक में लिखा गया है। ओशो ने अपनी शिक्षा सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त की और बाद में वे एक प्रोफेसर बन गए। उन्होंने अपने जीवन में कई देश में यात्रा की और आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्यान दिए। ओशो ने अपने अनुयायियों के लिए एक समुदाय की स्थापना की, जिसे राजनिशपुरम कहा जाता है। उनके शिक्षाओं में प्रेम स्वतंत्रता, और आत्म-साक्षरता पर जोर दिए है। ओशो की शिक्षाएं आज पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं और उनकी पुस्तकें कई भाषाओं में अनुवादित हुई हैं। ओशो, जिन्हें भगवान श्री रजनीश के नाम से भी जाना जाता है, एक आध्यात्मिक नेता और दार्शनिक थे, जो अपने क्रांतिकारी विचारों और शिक्षाओं के लिए जाने जाते हैं। जो पारंपरिक धार्मिक सीमाओं से परे थे, प्रेम ध्यान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर उनके विचारों ने दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया है। ओशो क्या दर्शन किसी एक विशेष प्रणाली तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यग्तिगत अन्वेषण और-आत्म खोज को प्रोत्साहित करता है।
ध्यान का सार।
ओशो की शिक्षाओं के केंद्र में ध्यान है। उन्होंने इसे आत्म-खोज और आंतरिक शांति के लिए एक उपकरण के रूप में देखा। ओशो के अनुसार, ध्यान मन को नियंत्रण करने के बारे में नहीं है, बल्कि बिना किसी निर्णय के उसका अवलोकन करने के बारे में है। जागरूकता का या अभ्यास व्यक्ति को स्वयं और दुनिया की गहरी समझ की ओर ले जाता है। ओशो ने गतिशील ध्यान तकनीकें पेश कीं, जिनमें व्यक्ति को वातानुकूलित पैटर्न से मुक्त होने में मदद करने के लिए गति, स्वास और ध्वनि शामिल हैं। ओशो का मानना था कि जब लोग ध्यान करते हैं, तो वे अपने सच्चे स्व से जुड़ते हैं, जो वास्तविक आनंद का अनुभव करने के लिए आवश्यक है। उन्होंने दैनिक जीवन में सचेतना और उपस्थिति की स्थिति विकसित करने के लिए नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करने की सलाह दी।
प्रेम और संबध।
प्रेम पर ओशो की अंतर्दृष्टि गहन और परिवर्तनकारी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रेम स्वतंत्रता पर आधारित होना चाहिए न कि अधिकार जताने पर। उन्होंने बताया कि सच्चा प्रेम बिना किसी बाधा के बढ़ने और फलने-फूलने की अनुमति देता है। ओशो ने रिश्तों को व्यक्तिगत विकास और आत्म-जागरूकता के अवसरों के रूप में देखा। ओशो के अनुसार, जब प्रेम अपेक्षाओं और मांगों से रहित होता है, तो यह आनंद और तृप्ति का स्रोत बन जाता है। उन्होंने लोगों को प्रेम को एक समृद्ध अनुभव के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जो जीवन को जटिल बनाने के बजाय उसे बेहतर बनाता है।
वर्तमान क्षण में जीना।
ओशो की मुख्य शिक्षाओं में से एक वर्तमान क्षण में जीने का महत्व है। उनका मानना था कि अतीत और भविष्य भ्रम हैं जो हमें जीवन का पूरी तरह से अनुभव करने से विचलित करते हैं। वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करके, व्यक्ति पछतावे और चिंताओं से मुक्त हो सकते हैं, जिससे एक अधिक संतुष्टदायक अस्तित्व प्राप्त होता है। ओशो अक्सर जागरूकता और मनन के साथ जीने की सुंदरता के बारे में बात करते थे, उन्होंने बहुत महापुरुष पर व्याख्यान दिए जो सबके वश की बात नहीं है, सहज तरीके से बोलने का कला शब्द ऐसे जैसे कोई पुकार रहा हो, कोई बुला रहा हो। उन्होंने अनुयायियों से आग्रह किया कि वे जीवन के साथ जुडें, जैसे-जैसे यह सामना आता है, पिछले अनुभवों या भविष्य की चिंताओं के बोझ तले दबे बिना प्रत्येक क्षण का आनंद लें।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भूमिका।
ओशो ने आत्म-साक्षात्कार के मार्ग के रूप में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विचार का समर्थन किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि सामाजिक मानदंड और परंपराएं अक्सर व्यक्तिगत विकास और रचनात्मकता को सीमित करती हैं। इन बाधाओं से स्वयं को मुक्त करके, व्यक्ति जीवन में अपनी वास्तविक क्षमता और उद्देश्य की खोज कर सकता है। उन्होंने लोगों के पारंपरिक मान्यताओं पर सवाल उठाने और अपने व्यक्तित्व को अपनाने में लिए प्रोत्साहित किया। ओशो की शिक्षाएं लोगों को प्रमाणिक और साहसी तरीके से जीने के लिए प्रेरित करती हैं, ऐसी विकल्प बनाती है जो उनके सच्चे स्व के अनुरूप हों।
ओशो के शिक्षाओं का प्रभाव।
ओशो की शिक्षाएं दुनिया भर के लोगों को प्रभावित करती हैं, उन्हें आप नवीनतम बुद्ध कह सकते हैं जिन्होंने आस्तिक और नास्तिक दोनों पर जोर दिया ताकि दोनों को जानकर हम दोनों में स्थिर हो सकें। उनका लेखन और प्रवचनों में आध्यात्मिकता, मनोविज्ञान और दर्शन सहित कई विषय शामिल हैं। कई लोगों को उनका दृष्टिकोण ताज़ा और मुक्तिदायक लगता है, जो सार्थक जीवन जीने के तरीके पर नए दृष्टिकोण प्रदान करता है। उनकी विरासत प्रेम, स्वतंत्रता, ध्यान और आत्म-जागरूकता के उनके संदेश को फैलाने के लिए समर्पित विभिन्न ध्यान केंद्रों, पुस्तकों और ऑनलाइन संसाधनों के माध्यम से जीवित है। जो लोग स्वयं तथा विश्व में अपने स्थान को गहराई से समझना चाहते हैं, उनके लिए ओशो की शिक्षाएं मार्गदर्शक प्रकाश का काम करती हैं।
मेरा अनुभव।
जब आप ओशो को सुनते हैं पास आते हैं तभी आप को लगता है कि सत्य की वर्षा हो रही है। एक ऐसा सत्य जैसा लगता है हमसे छुपाया गया हो लगता है अचानक इतना आनंद का वर्षा कोई और के व्याख्यान में ऐसा नहीं, क्योंकि आप बहुत महापुरुष को बस पुस्तक के माध्यम से जानते थे लेकिन किसी सदगुरु के मुंह से सत्य सुनना ये ओशो द्वारा ही हुआ। आप उनको सुनने के बाद स्वयं को रूपांतरण किए बिना नहीं रह सकते, उनका एक एक तथ्य तर्क हमारे बुद्धि से सीधे हृदय तक पहुंचाता है। ऐसा लगता है जैसे की हमें अचानक सब कुछ मिल गया हो, जिसके बारे में हम कभी सोच नही पाए आज अचानक सत्य दिखा आप कैसे रोक सकते हैं स्वयं को, आप रूपांतरण करोगे ही और कोई उपाय नहीं बचता इनको सुनने के बाद। हर एक विषय पर पूर्ण व्याख्यान कोई और नहीं दे सकता, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्यों से पूर्ण अवगत कराना मात्र ओशो ही कर सकते हैं। ध्यान की बात सभी महापुरुष किए लेकिन सत्य का ऐसे व्याख्यान देना कोई नहीं कर सकता है। हमें उन्हें पढ़ना चाहिए ताकि जीवन में पूर्ण स्पष्टता आ सकें। ओशो निष्काम के साथ थे, वह पीछे नहीं पर गए की यही करना है यही सत्य है मानना ही होगा वह थोपे नहीं, वह स्वतंत्र छोड़ दिए वह सब बात को ध्यान में रख कर बोलते थे, मानना है नहीं यदि पूर्ण जानना है तो, उनका मुख्य संदेश है बस हो जाओ बस साक्षी भाव बस होना न की बनना कुछ, वह सभी बात पर ध्यान केंद्रित किए ताकि कोई कुछ बाहरी सफल होना चाहता है तो उसके लिए दृष्टिकोण दिए कोई असफल है फिर उसको उठाए और जो बिना कुछ जाने ज्ञान दे रहे हैं उस पर भी बोले, मुख्य बात यही है जो ज्ञान को उपलब्ध हो जायेगा वह प्रेम करुणा शांति की ओर बढ़ेगा न की अज्ञान के तरफ़ नीचे की तरफ़ वह ठहरना चाहेगा न की दौड़ना, किसके लिए कोई नहीं बचता। अगर बचता है तो ज्ञान से अभी वह बाहर ही खड़ा हैं। हमें जानना होगा तभी हम पूर्ण जागरूक और संतुष्ट होंगे आनंदित होंगे जागरूक होंगे और एक दिन परमानंद की उपलब्धि हासिल होगा, यदि निरंतर ध्यान का अभ्यास से हम जीवंत हों सकते हैं।
धन्यवाद।
रविकेश झा।🙏❤️