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10 Feb 2020 · 1 min read

ओझल न होना

तनिक भी ओझल न होना नैन भर कर देख लूं मैं
स्वयं ही अपने हृदय का चैन हर कर देख लूं मैं।
क्यों रहूं बैठा यूं ही मैं प्यास के तटबंध पर
तृप्ति की गहराई में क्यों न उतर कर देख लूं मैं।
केतकी उतरी नहाने कुंड में रतिगंध के
पारिजातक पुष्प बन उन्मुक्त झर कर देख लूं मैं।
स्पर्श की विद्युत लहर सह न सकूंगा सत्य है
देह की इस दामिनी पर अधर धर कर देख लूं मैं।
अंकित हुए हैं नेह के अनगिनत अवसर अंक में
एक बार फिर मधुयामिनी में लिप्त प्रियवर देख लूं मैं।

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