ऑनलाइन पढ़ाई (अवधी)
लड़िका कै जेस नाव लिखावा, कोरोना सरवा आइ गवा।
अउर कहूँ तौ नाहीं पहिले, सकुलियैम ताला लगवाय गवा।।
सारे मास्टर मिल कै फिर, तरकीब इहै निकारिन हैं।
अब लड़िके ऑनलाइन पढ़िहैं, घर घर जाय बताइन हैं।।
मारे ग़ुस्सक हमहूँ भैया, गोहूँ सगरिव बेच दिहेन।
भिनगा बज़रियम जाय कै, मोबाइल एक खरीद लिहेन।।
देख मुबाइल खुस भा मंगरा, हाथेस हमरे छोर लिहिस।
दिन रात पढ़ै मोबाइल मा, माँगी तौ हमका नाय दिहिस ।।
मनै मन हम खुसी रही, लड़िका खोबै पढ़त है अब।
का जानत रहेन कि ससुरा, बरबादिक सीढ़ी चढ़त है अब।।
यक दिन देखेन चुप्पइ से, मोबाइल मा उ पढ़त रहा।
नँग धड़ंग मेहरारुन कै गाना, हँस हँस कै ऊ सुनत रहा।।
तब हम जाना बिलाय गयन, लड़िका तौ ई बिगरि गवा।
पढ़इक बहाने मोबाईल मा, बहुतै आगे निकरि गवा।।
मोबाइल छोर पटक दिहेन, मूड़ेप हाथ दै मारेन।
ऑनलाइन पढाय क बचवा, हम तौ तुहका भर पायेन।।
प्रीतम इहै बतायइत है, लड़िकक मुबाइल थ थम्हावौ ना।
स्कूल खुलै तब पढ़ै क भेजेव, मुल ऑनलाइन पढ़ा वौ ना
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)