ऑंसू छुपा के पर्स में, भरती हैं पत्नियॉं
आँसू छिपा के पर्स में, भरती हैं पत्नियॉं (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
आँसू छुपा के पर्स में, भरती हैं पत्नियॉं
सबसे बड़ी सजा है, सँवरती हैं पत्नियॉं
(2)
जैसे कसाई ले गया, रस्सी से बाँधकर
कुछ महफिलों से ऐसे, गुजरती हैं पत्नियॉं
(3)
पतियों की हद से ज्यादा, गुलामी मिली इन्हें
जिंदा है फिर भी रोज ही, मरती हैं पत्नियॉं
(4)
मालूम हैं मजबूरियाँ, इनकी सभी को यह
पतिदेव ने जो कह दिया, करती हैं पत्नियॉं
(5)
ससुराल से गुस्सा हुए, पतिदेव जब कभी
गुस्से से उनके उस समय, डरती है पत्नियॉं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451