ऑंख से निकला
ऑंख से निकला
जो ऑंसू आग से भी
कम नहीं ।
ऐंसे ऑंसू पोंछने का हर
किसी में
दम नहीं ।।
गरीबों के घर
लगी थी आग
ही तो बुझाई है।
जल गए कुछ
हाथ इसमें इसका कोई
गम नहीं ।।
चाटते जो हर किसी
के चरण यह
आदत है जिनकी ।
दूर ही रहते हैं
इनके पास में फिर
हम नहीं ।।
शोर है जिस धमाके का
देखिए
नजदीक से।
एक टायर फट गया है
कहीं कोई
बम नहीं ।।
✍️सतीश शर्मा।