ऐ हरी कलम
ऐ हरी कलम मतवाली!धीरे धीरे चल
तेरी झट-झट लचक-लचक पर,जाने कितनी जानें अटकी
संभल संभलकर,सोच समझकर ऐ मतवाली धीरे चल।
राज दुलारी,सबकी प्यारी ऐ हरी कलम!तू धीरे चल
किसी की रोजी ना छिन जाए,पेट को केवल रोटी भाए।
मालिक की मति को स्वस्थ बनाना,हर करके सब मन का मल
ऐ हरी कलम मतवाली! धीरे-धीरे चल।
मेरी अँगुलियों के बीच में बसकर कर दे सबका बेहतर कल
स्वस्थ रखो तुम मन को हरदम,नहीँ कभी हो कोई हलचल
ऐ हरी कलम मतवाली! बस तू धीरे चल।
~~~अनिल मिश्र,प्रकाशित,प्रसारित