ऐ वक्त जरा रुको तो सही
ऐ वक्त, ज़रा रुको तो सही ,
ठहरों ना , मेरे साथ थोड़ी देर ही सही ,
ऐ वक्त बैठो न मिलकर, हम कुछ बातें करेंगे ,
पुराने बीते हुऐ पन्नों को, मिलके साथ पढ़ेंगे ,
किसी के साथ गुजरी हुई, मुलाकातों को याद करेंगे,
ऐ वक्त बैठो ना … …………………………..
दो चार चाय की चुसकियाँ, तुम भी ले लो मेरे साथ ,
कुछ बातों के बंद बक्सों से, तुम कुछ कहानियाँ कहो,
कुछ मैं भी कहूँ , नए जायके के साथ ,
ऐ वक्त बैठो ना ………………………….
कितनी ही यादों ने, हमको रुलाया भी होगा,
पलकों के पीछे से, आँसुओं को छिपाया भी होगा,
ना जाने कितने बंद किताबों में, फूलों को सुखाया भी होगा ,
ऐ वक्त बैठो ना ………………………………………..
कागज़ों कि ना जाने कितनी कशतियाँ बही होंगी ,
वही पुराने बारिश के पानी में ,
ना जाने कितने दोस्तों कि महफिलें सजी होंगी ,
वही पुराने चौराहों में ,
ना जाने कितने सपने हुई होंगे मुकम्मल,
और ना जाने कितने बिखरे हुऐ सितारे होंगे ,
ऐ वक्त बैठो ना ……………………………..