ऐ लड़की मत बोलो
मैं मम्मी की लाडली बेटी हूँ। मेरे जन्म से पहले ही पापा और दादा-दादी तो कह रहे थे , लड़का
मही होगा ।
खैर मेरा जन्म हुआ , मातम सा रहा । पापा अपनी खीज निकालने के लिए मुझे ” ऐ लड़की , ऐ लड़की ”
कहने लगे ।
मुझे यह अच्छा नहीं लगता ।
मैं स्कूल जाने लगी , बहुत होशियार हूँ मैं फस्ट आती और खूब ईनाम जीतती पर वह खुश नहीं होते ।
मम्मी मेरा संबल है ।
अब पापा फिर एक लड़के को लाने की बात मम्मी से करते पर मम्मी मुझे ही लड़का समझती , उनकी निगाह में लड़का लड़की एक हैं बस परवरिश अच्छी होनी चाहिए ।
अब पापा कहते :
” ऐ लड़की , तू लड़की है और उसी की तरह रह । मुझे फ्राक से चिढ़ है लेकिन वह वही पहनाते ।
मैं बड़ी हो रही थी और समझदार भी , अब मेरा मन मुझे कचोटने लगा
आखिर एक दिन मैने पापा को बोल ही दिया:
पापा मुझे ” ऐ लड़की , ऐ लड़की मत बोलो ”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल