ऐ मेरे प्यारे वेतन,,,
ऐ मेरे प्यारे वेतन, तुझसे सब अरमान,
तू नहीं तो जिंदगी है, धूल सी बेजान।।
पहले मैं भी था बेचारा, फिरता था मारा मारा,
मेरिट बनी नौकर बना, हैं सभी हैरान,
तेरे ही आने से मुझको है मिला सम्मान।
ऐ मेरे प्यारे वेतन, तुझसे सब अरमान,
तू नहीं तो जिंदगी है, धूल सी बेजान।।
देश फंसा है राजनीति में, नाम है ऐसे-तैसों का,
संस्कार का मोल नहीं अब, मोल है केवल पैसों का।
इंटरव्यू बस नाम का है, धन है चयन-प्रतिमान,
बुद्धि लब्धि तू ही और इंसान की पहचान,
तुझसे है सब की प्रतिष्ठा तू ही सबकी जान।
ऐ मेरे प्यारे वेतन, तुझसे सब अरमान,
तू नहीं तो जिंदगी है, धूल सी बेजान।।
शिक्षा का मंदिर है लगता अब तो यूं मझधार में,
हाथ में थाली-कटोरा लेकर खड़े हैं कतार में।
दाल-रोटी खीर-पूड़ी हलवा और पकवान,
स्कूल अब तो हो चले हलवाई की दुकान,
इनको मिलना चाहिए होटल का सम्मान।
ऐ मेरे प्यारे वेतन, तुझसे सब अरमान,
तू नहीं तो जिंदगी है, धूल सी बेजान।।
नौकरी सरकार की हम शौक से करते रहें,
पर हमारे खुद के बच्चे प्राइवेट में पढ़ते रहें।
हमको वेतन मिल रहा है बस यही है शान,
तू ही दृष्टि है निराली धरती और आसमान।
ऐ मेरे प्यारे वेतन, तुझसे सब अरमान,
तू नहीं तो जिंदगी है, धूल सी बेजान।।
घूमते हैं शान से वह, भेड़ियों के भेष में,
जाने कब बदलेगा मौसम, अपने पावन देश में,
जाने कब झूठी पड़ेगी ‘अज्ञात’ की जुबान।
ऐ मेरे प्यारे वेतन तुझसे सब अरमान,
तू नहीं तो जिंदगी है धूल सी बेजान।।