ऐ मेरी रात…
रात मेरी जान तू क्यों बेज़ार नज़र आती है
सोगवार सी हर रात तू बेचैन गुज़र जाती है
लग के सिरहाने से हर रात तू सिसकती है
सहर शबनम लिए आँचल में तू चुपचाप चली जाती है
ऐ मेरी रात, तू हर रात क्यों बेचैन नज़र आती है
सुबह गुम जाने कहाँ ,किस ओर चली जाती है
ऐ मेरी रात बता गम से तेरा क्या नाता है
हर रात ही क्यों गम तेरे दामन में चला आता है
ऐ मेरी रात बता..