ऐ बादल झूम के चल
ऐ बादल झूम के चल ——
‘सुन रहा है भाई पृथ्वीलोक वासी क्या कह रहे हैं?’ बादल का नन्हा टुकड़ा अपने बड़े भाई से बोला। ‘क्या कह रहे हैं?’ अपनी उड़ान में मस्त धवल सफेद बादल का दूसरा टुकड़ा बोला। ‘अरे भाई, तेरा ध्यान किधर है? ज़रा नीचे से आती आवाज़ों को सुन’ पहला टुकड़ा बोला। ‘अच्छा मेरे भाई, सुनता हूं’ दूसरे टुकड़े ने कहा। वह ध्यान से सुनने लगा ।
उसने सुना ‘आजकल तो बादल अजीब हो गये हैं, जहां जरूरत है वहां बिना बरसे निकल जाते हैं, जहां जरूरत नहीं है वहां बरस जाते हैं, धरती पर किसे जरूरत है, किसे नहीं, कुछ नहीं देखते, आवारा हो गये हैं।’ ’धरती वासी तो कुछ न कुछ रहते रहेंगे, आजा दौड़ लगा ले’ दूसरा टुकड़ा पहले से बोला। पहला टुकड़ा कुछ सोच में पड़ गया था पर दूसरे टुकड़े ने उसे धक्का देते हुए कहा ‘चल भई, रुकना हमारा काम नहीं है, हमें उड़ते ही जाना है।’ धक्के से पहला टुकड़ा अनमने भाव से आगे उड़ चला पर उसके दिलोदिमाग में धरती वासों की बातें रह-रहकर गूंज रही थीं। ‘दद्दू से पूछंगा’ मन ही मन कहता चला।
दिन-भर आकाश में अठखेलियां करते रहे। कभी सूरज से आंख-मिचैनी खेलते तो कभी आपस में घमासान करते जिससे गड़गड़ाहट होती। दोनों ही अपने यौवन के उफान पर थे जिनके कंधों पर अभी किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं थी। शाम होने लगी थी, सूरज देवता भी अपने घर लौटने को थे पर इन दोनों को किसी बात की फिक्र नहीं थीं। पहला टुकड़ा कभी कुछ बोलता तो दूसरा टुकड़ा उसे चुप करा देता। सूरज देवता अपने घर लौट गए थे। आकाश में अंधेरा छा गया था। बादल के दोनों टुकड़े भटक गए थे।
उनके मां-बाप चिंतित थे ‘अभी तक दोनों घर वापिस नहीं आये’। ‘चलो चलकर देखते हैं, लगता है रास्ता भटक गए हैं’ कहते हुए दोनों रात के अंधेरे में चल पड़े। अमावस की रात थी कुछ सूझता न था। मां-बाप ने सौदामिनी को पुकार लगाई ‘सौदामिनी, अरी बिटिया सौदामिनी!’ उनकी पुकार सुनकर सौदामिनी तुरन्त आ पहुंची ‘क्या बात है दादा?’ ‘सौदामिनी, हमारे दोनों बच्चे आकाश में भटक गए हैं, रात काली है, अमावस वाली है, कुछ सूझता नहीं, ज़रा हमें रास्ता दिखाओ!’ ‘अभी लीजिए दादा’ कह कर सौदामिनी चमक उठी। आकाश जगमगा उठा। उनके दोनों बच्चे भी दिखाई दिए। सभी की सांस में सांस आई। ‘कहां चले गए थे बच्चो?’ उन्होंने पूछा। ‘हम आकाश मार्ग की सैर करते करते खेल रहे थे, पता ही नहीं चला कब रात्रि काल हो गया और हम पथ भटक गए’ दोनों ने कहा। ‘चलो, अब तुम दोनों वापिस चलो’ मां-बाप ने कहा। ‘सौदामिनी, तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, तुमने हमारे बच्चों को ढंूढने में मदद की है’ मां-बाप बोले। ‘नहीं, दादा यह तो मेरा फर्ज था, जब भी जरूरत हो बेहिचक कहिएगा, मैं हाजिर हो जाऊंगी’ कहते हुए सौदामिनी लौट गई। ‘चलो, अब तुम दोनों सुबह होने तक कहीं नहीं जाना’ मां-बाप ने समझाया। ‘ठीक है … पर …’ छोटा बादल बोला। ‘पर क्या बेटा?’ मां-बाप ने पूछा। पूछने पर पहले टुकड़े ने सारी कथा कह डाली।
‘हूं, तो यह बात है। तो सुनो ऐसा क्यों होने लगा है’ उनके पिता बोल उठे थे ‘धरती पर पहले बहुत हरियाली थी, घने जंगल थे, धरतीवासियों की संख्या बहुत कम थी, सभी आपस में प्रेम से रहते थे, गर्मियों में जब नदी-पोखर सूखने लगते तो हम बरस कर उन्हें फिर से भर देते थे, किसान अपने खेतों में मेहनत करता था तो उसकी मेहनत का फल देने के लिए हम बरस कर उसके खेतों में सिंचाई कर देते थे, हमारी गड़गड़ाहट सुनकर मोर नाच उठते थे, आज भी नाचते हैं, पपीहा बोल उठता था, आज भी बोलता है, पर हमारी पहली बूंदें वातावरण में फैली धूल के साथ मिलकर मटमैली होकर बरसती हैं जिसे धरतीवासी पसन्द नहीं करते। हम भी क्या करें? हमारे रास्ते में तो अगर धूल आयेगी तो हम उससे मिलकर ही धरती पर पहुंचेंगे। पहले नदी-झरनों में साफ और शुद्ध जल बहता था जिसे धरतीवासी पीकर अपनी प्यास बुझा लेते थे। आजकल साफ जल न होने से वे रोगी हो जाते हैं। हम लाचार हैं कुछ कर नहीं पाते। प्रकृति में बहुत ही संतुलन था। हम भी वहीं बरसते थे जहां जरूरत होती थी। अब तो धरतीवासियों ने गगनचुम्बी इमारतें खड़ी कर दी हैं। हमारा धरती से मिलन ही नहीं हो पाता। जब हम इन इमारतों से टकराते हैं तो घायल हो जाते हैं और धरती से मिलने को नहीं जा पाते।’ कहते कहते बड़ा बादल चुप हो गया। ‘आगे बताओ न, फिर क्या हुआ?’ छोटे बादल ने पूछा।
‘हं, बताता हूं। कुछ दिनों पहले मैं एक शहर के ऊपर से उड़ान भर रहा था। गगनचुम्बी इमारतों के बीच धरती के एक मैदान पर खेल रहे नन्हें बालक मुझे इशारे से अपने पास बुला रहे थे। उनकी मासूमियत देखकर मैं उनसे मिलने को नीचे उतरा तो एक इमारत से टकरा गया और मुझे चोट भी लगी पर उन मासूम बालकों को क्या मालूम?
‘आपको चोट लग गई?’ छोटा बादल बोला। ‘हां, फिर भी मैंने इमारतों के बीच में से उतरने के बहुत प्रयास किये पर इमारतों के जाल को नहीं काट पाया और उदास होकर वापिस ऊपर आ गया। वे नन्हें बालक भी उदास रह गये। मैं मजबूर था। धरतीवासियों की करनी के कारण मैं मासूम बालकों से न मिल सका था’ बड़े बादल ने कहा। ‘आगे की कहानी सुनाते रहो, अच्छा लग रहा है’ छोटे बादल की उत्सुकता बनी हुई थी।
‘एक दिन मैं कुछ हरी भरी वादियों से भरे गांव के ऊपर से उड़ान भर रहा था। वहां भी घरों के बाहर मिट्टी में बालक खेल रहे थे। मैं उन्हें देखकर खूब प्रसन्न हुआ और खुद ही उनसे मिलने के लिए धरती पर उतर गया। मुझे देखकर वे बहुत खुश हुए और मुझसे खेलने लगे। मेरे श्वेत धवल रूप को छूकर वे आनन्दित हो उठे। मैं भी बालकों के कोमल स्पर्श से खुश हो गया। हम बहुत देर तक खेलते रहे। फिर शाम हो गई, वे बालक अपने घरों में चले गए और मैं भी कुछ उदासी लिए आकाश में वापिस उड़ गया।’ बड़े बादल ने कथा को अल्पविराम दिया। ‘आप यह सब करते हुए थकते नहीं थे’ अबकी बार दूसरा भाई बोल उठा था।
‘हां, कभी-कभी जब मैं उड़ते उड़ते थक जाता तो पहाड़ों, चट्टानों और पेड़ों पर आराम कर लेता। अब तो पेड़ इमारतों से छोटे हो गए हैं और बहुत सारी जगह पर तो धरतीवासियों ने पेड़ों को भी काट दिया है। पेड़ काटने से न जाने कितने पंछी बेघर हो गए और कितने ही काल-कवलित हो गये पर धरतीवासियों को रहम नहीं आया। वे पंछी मेरे संग-संग आकाश में उड़ते थे और अपने कलरव से मेरा दिल बहलाते थे। इन धरतीवासियों में संवेदना समाप्त होती जा रही है। पर मैं अपना स्वभाव नहीं बदल सकता। ये जो धरतीवासी कहते हैं कि हम कहीं भी बिना सोचे बरस पड़ते हैं इसके जिम्मेदार ये खुद हैं जिन्होंने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है। बहुत ही नासमझ हैं। अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।’ बड़े बादल ने फिर बताया। ‘ये तो बहुत ही अन्याय कर रहे हैं धरतीवासी’ छोटा बादल बोला।
‘हां, और सुनो। धरती पर देवलोक से उतरी गंगा को भी धरतीवासियों ने मैला कर दिया है। कलयुग है, घोर कलयुग। धरतीवासी अपने ही नाश की ओर बढ़ रहे हैं। काश वे इसे समझ पाते! हां कुछ धरतीवासियों में चेतना जागी है और ये वातावरण और पर्यावरण के प्रति सजगता फैलाने में लगे हैं। मैं उन्हें शुभकामना ’ लम्बी बात पूरी कर बड़ा बादल खामोश हो गया और अतीत की यादों में खो गया जब उसे एक धरतीवासी की आवाज़ आती थी ’ऐ बादल झूम के चल, जमीं को चूम के चल, मौसम महका महका है, दिल बहका बहका जाए’ और उसकी आंखों से एक आंसू टपक पड़ा।
छोटा बादल का टुकड़ा बोला ‘निराश न हों आप, मैं इस दिशा में कुछ कार्य करूंगा, हर युग में कोई न कोई अवतार होता है, मैं भी धरतीवासियों को समझाने के लिए बादल अवतार का रूप धारण कर जन्म लूंगा और खुशहालियों को पुनः लौटाने के भागीरथ प्रयास करूंगा, आप मुझे आशीर्वाद दीजिए’।