ऐ बादल अब तो बरस जाओ ना
तपती धरती पर तरस खाओ ना
ऐ बादल अब तो बरस जाओ ना
सुख रहें हैं सारे खेत खलिहान
है भीषण गर्मी शाम चाहें बिहान
पशु- पक्षी प्यासे फड़फड़ा रहे हैं
आदमी तर बतर हुए जा रहे हैं
ऐ मेंढक जोर- जोर टरटराओ ना
ऐ बादल अब तो बरस जाओ ना
सूख रहे सब नदी -नाले,तालाब
मछलियां तड़पने लगी बिन आब
सड़कें , गलियां सब सुनसान हुए
नवजात शिशु गर्मी से परेशान हुए
ऐ हिमालय जरा उसे समझाओ ना
ऐ बादल अब तो बरस जाओ ना
कण-कण धूल बन बिखर रहे हैं
हवाएं, फिजाएं भी बिफर रहें हैं
उतरी सी लगती फूलों की रंगत
आकाश में न दिखे बगुलों की संगत
ऐ पपीहा उसे जल्दी बुलाओ ना
ऐ बादल अब तो बरस जाओ ना।
नूर फातिमा खातून” नूरी”
जिला कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मौलिक स्वरचित