ऐ बहुजन तू जाग जा..
ऐ बहुजन तू जाग जा…2
नींद तेरी कहीं तेरा आशियाँ करदे ना बरबाद,
तू आ अब होश में, ग़हरी नींद से उठ जा ।।
ऐ बहुजन तू जाग जा…
क़त्ल-ए-आम तेरी अशमत का,
भुला दिया कैसे तूने ।
तेरी सोच को ख़त्म किया है,
या फ़िर दुःख -दर्दों को तूने गले से लगा लिया ।।
ऐ बहुजन तू जाग जा….
वक्त-वक्त पर तेरे अनहोता,
जगा-जगाकर चले गए ।
कुम्भा नींद में तू सोया है,
है वक़्त अभी भी जाग जा ।।
ऐ बहुजन तू जाग जा…..
सम्मान की ख़ातिर जीना -मरना,
तेरे पुरखों की निशानी थी ।
सौदा जो स्वाभिमान का करले,
उस जन्म को है धिक्कार तेरा ।।
ऐ बहुजन तू जाग जा….
इक पशु की ख़ातिर खून खौल उठा,
क्यूँ न उबला खून दरिंदों पै ।
तेरी बहन-बेटियाँ क्या इतनी सस्ती हैं,
जो तू मज़े में रह गुलज़ार चला ।।
ऐ बहुजन तू जाग जा…
बहनों सुनो “आघात” ज़ुबानी,
तुम बन जाओ फूलन मर्दानी ।
एक आँख उठे गर तेरी ओऱ,
उस आँख को उसकी औक़ात बता ।।
ऐ बहुजन तू जाग जा …
आर एस बौद्ध”आघात”
अलीगढ़