ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
(विधा- छंदमुक्त स्वतंत्र))
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं
गरमी की छुटियों को तगङे आलस में जी आऊं
भानुमति के पिटारे से निकलूं छोटी सी छोरी बन
बाईस्कोप में मुंह ढाँप अपना छुटपन देख आऊं!!
आसमान में आंख टांग के कुछ पतंगे लूट लाऊं
पेङों की फुनगी तक जाकर बादल छू के आऊं
छुपन छपाई खेलूं सखा संग रूठूं और मनाऊं
मेरे दाम की बारी आये तो सब पर रोब जमाऊं
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
लट्टू को रस्सी पे लपेटूं और दुनियां को घुमाऊं
गुल्ली डंडे से खिङकी के कांच फोङ के आऊं
रेलगाङी की पटरी से कुछ गुट्टे बीन के लाऊं
गोल गोल से कंचो में, काल्पनिक संसार बसाऊं
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
हाथ गुलेल लूं निशाना साधूं ,पके आम टपकाऊं
सितौलिये पर गेंद को मारूं जोर जोर चिल्लाऊं
घोङा बादाम छाई के पीछे, सोटे से मार लगाऊं
राजा मंत्री चोर सिपाही सबको ये खेल खिलाऊं
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
खो खो में यूं चौकन्नी हो खुद को ही खो जाऊं
सांप-सीढी पे चढी उतरती जीतूं कभी हार जाऊ
बारिश का पानी गडडों में छपाक छलांग लगाऊं
बरखा के बहते पानी में कागज की नाव चलाऊं
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
रंग बिरंगी तितली पकङूं ,खुद तितली बन जाऊं
साईकिल के पुराने टायर संग जमके दौङ लगाऊं
चिङिया जब उङ जाये अंगुली से, भैंस भी उङाऊं
लंगङी टांग से छपट पटक के पलटी मार गिराऊं
ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!
—–डा. निशा माथुर (स्वरचित)