ऐ जिंदगी थोड़ी ठहर जा!
ऐ जिंदगी थोड़ी ठहर जा!
ऐ जिंदगी थोड़ी ठहर जा,
तेरी रफ्तार से घबराने लगा हूँ मैं!
मन के भावों को भी थाम ले कोई,
इस भटकाव से कुम्हलाने लगा हूँ मैं!
वो जमाना और था, दौड़ती थी जब जिंदगी,
अब तो ठहराव में सुकूँ पाने लगा हूँ मैं!
कभी बारिश की इन बूंदों का कायल था,
अब कीचड़ से पावों को बचाने लगा हूँ मैं!
मोहब्बत भी की, दोस्ती भी खूब निभाई,
अब इन रिश्तों से कतराने लगा हूँ मैं!
समय के साथ शायद सब कुछ बदल रहा,
इस बदलते परिवेश को अब अपनाने लगा हूँ मैं!
ऐ जिंदगी थोड़ी ठहर जा,
तेरी रफ्तार से घबराने लगा हूँ मैं!